आज के अपने इस आर्टिकल में हम बात करेंगे Gautam Budh के बारे में, जिन्होंने धर्म और सत्य की खोज करने के लिए अपना राज – पाठ सबकुछ छोड़कर वनों को ही अपना घर बना लिया था। जिन्होंने अपनी गृहस्थी को छोड़ कर संसारिक जीवन को त्याग करके ज्ञान कि खोज में लग गए थे। इसलिए आज के अपने इस आर्टिकल में हम आपको Gautam Budh ki Jivni के बारे में विस्तार से बतायेगे।
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भगवान गौतम बुद्ध का जन्म
भगवान गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी वन में ईसा से 563 साल पहले हुआ था। गौतम बुद्ध की माँ मायादेवी जब नहाने जा रही थी, तभी अचानक से रास्ते मे उनको पीड़ा हुई और माया देवी ने भगवान गौतम बुद्ध को वही लुम्बिनी वन में जन्म दिया। शुरुआत में गौतम बुद्ध को उनके माता पिता द्वारा सिद्धार्थ नाम दिया गया था।
भगवान गौतम बुद्ध का पारिवारिक संबंध
गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन था और उनकी माता का नाम मायादेवी था। गौतम बुद्ध के जन्म के कुछ ही दिनों बाद ही उनकी माँ का देवलोक गमन हो गया था। उसके बाद गौतम बुद्ध का लालन – पालन उनकी मौसी गौतमी ने किया था। गौतम बुद्ध की शादी मात्र 16 वर्ष की उम्र में राजकुमारी यशोधरा से हुई थी। जिससे उनको एक बेटा पैदा हुआ था, जिसका नाम राहुल था। कुछ बाद समय धर्मपत्नी और बच्चें को त्यागकर गौतम बुद्ध ज्ञान की खोज में निकल गए थे।
गौतम बुद्ध जी ने कहाँ से शिक्षा प्राप्त की थी?
गौतम बुद्ध बनने से पहले सिद्धार्थ जी ने अपने गुरु विश्वामित्र जी से पूरे वेद और उपनिषदों का ज्ञान प्राप्त किया था। इसके अलावा युद्ध और काम काज की शिक्षा ग्रहण की थी और उसके अलावा तीर – कमान – खेल – कूद – घुड़सवारी और कुश्ती जैसी कई शिक्षाएं प्राप्त की माना जाता है। सिद्धार्थ को रथ चलाने में महारथ थी और कोई भी उनकी बराबरी नही कर सकता था। समय – समय पर उन्होंने अलग – अलग तरह की शिक्षाऐं प्राप्त की थी।
गौतम बुद्ध के वो कार्य जो आपको प्रेरित कर देगा
गौतम बुद्ध ने अपनी शिक्षा में दुःख और उनके कारण और निवारण के लिए दुनियां को अष्ठांगिक का मार्ग सुझाया। उन्होंने सबसे ज्यादा अहिंसा पर ज़ोर दिया था। वे हमेशा पशु की बली का विरोध करते थे तथा निंदा किया करते थे। गौतम बुद्ध अहिंसा परमो धर्म को मानते थे।
गौतम बुद्ध की शिक्षाएं
ये संसार दुःखो का घर है और दुःख का मुख्य कारण वासनाएँ हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा था कि हमारी वासनाओं को दिल से मार देने से सभी प्रकार के दुःख दूर हो जाते हैं और सभी वासनाओं से संपूर्ण तरीके से छुटकारा पाने के लिए सभी को अष्ट मार्ग अपनाना चाहिए।
भगवान गौतम बुद्ध का विवाह
भगवान गौतम बुद्ध का विवाह 16 वर्ष की ही उम्र में ही हो गया था। भगवान गौतम बुद्ध ने अपनी भुआ की लड़की यशोधरा से विवाह किया था। महाराजा सुयोधन ने अपने पुत्र सिद्धार्थ का विवाह अपनी बहन की बेटी से इसलिए करवाया था, क्योंकि उस समय लक्ष्वी वंश से बड़ा कोई भी सम्राज्य उनके पास नही था। सिद्धार्थ और यशोधरा का एक बेटा हुआ, जिसका नाम राहुल रखा गया था।
भगवान बुद्ध का भारत से है गहरा नाता
भगवान गौतम बुद्ध को बिहार के बौद्ध गया में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। भगवान गौतम बुद्ध जी ने बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर तीन दिन और तीन रात तक कठोर तपस्या की थी। उसके बाद उनको ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उसके बाद यही से उनको अपने नए नाम बुद्ध के नाम से लोग और उनके शिष्य जानने लगे थे।
संन्यासी बनाने का विचार कहाँ से आया?
हमेशा महलों की चकाचौंध में रहने वाले सिद्धार्थ के पास हर एक सुख सुविधा मौजूद थी जो उनको चाहिए थी। उसके बाद भी वे संन्यासी क्यों बने? एक दिन सिद्धार्थ एक दिन सैर करने के लिए निकले। तो उन्होंने देखा कि रास्ते मे उनको एक बूढ़ा इंसान दिखाई दिया जिसके बाल बिल्कुल सफ़ेद हो चुके थे, बदन बिल्कुल मुरझाया हुआ था, दांत आधे से ज्यादा टूट गए थे। ये देखकर उनको लगा ये क्या है। थोड़ी ही दूर जाने के बाद एक और बूढ़ा आदमी उनको दिखा। जो रास्ते पर लाठी के सहारे काँपते हुए पैरो से चलते हुए जा रहा था। अंत मे सिद्धार्थ को एक अर्थी जाते हुए दिखी, जिसमे लोग विलाप करते हुए दिखाई दे रहे थे। चार लोग आगे – आगे अर्थी को लेकर चल रहे थे और पीछे – पीछे घर परिवार के लोग विलाप करते हुए जा रहे थे।
इस घटना ने सिद्धार्थ को पुरी तरह से झकझोर दिया था और सोचने को मजबूर किया कि आखिर ये सब क्या है क्यों है? लोग किस लिए जन्म लेते हैं, उसके बाद एक दिन फिर से सिद्धार्थ वही उसी जगह फिर से सैर करने निकले तो उनको एक संन्यासी दिखाई दिए। जो संसार की सारी कामनाओं और भावनाओं से परे मुक्त और प्रसन्न संन्यासी को देखा और यही से उन्होंने संयासी मार्ग चुनने का फैसला किया।
मात्र 29 साल की उम्र में घर परिवार को त्याग दिया था
सिद्धार्थ ने ज्ञान और सत्य की खोज करने के लिए 29 साल की उम्र में ही घर – परिवार को त्याग दिया था और एक अनंत यात्रा पर निकल पड़े थे। शुरुआत में उन्होंने भिक्षु बनकर भिक्षुओं के साथ दिन बिताएं। अलग – अलग जगह जाकर उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। पहले जब वे भिक्षु बने तो चावल – खीर आदि खा लिया करते थे। पर धीरे – धीरे उन्हें जैसे – जैसे ज्ञान प्राप्त होता गया। वैसे ही उन्होंने संपूर्ण रूप से भोजन को त्याग दिया और अंत मे वे निरंजना नदी के तट पर बसे गाँव उरुवेला आ गए और वही पर एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर ज्ञान पाने के लिए ध्यान में लीन हो गए।
बुध किस भगवान को मानते थे
दोस्तों आज भी कई सारे लोगों के मन में सवाल है कि बुद्ध किस की आराधना किया करते थे?। कई सारे पुजारियों और बुद्ध भगवान की पूजा करने वाले लोगों का मानना है कि भगवान बुध किसी भी देवी देवता के होने का दावा तो नहीं किया करते थे परंतु फिर भी वे रोजाना एक सीमित समय में पूजा अर्चना जरूर किया करते थे हम आपकी जानकारी के लिए बता दें कि किंवदंती है कि देवी तारा की आराधना भगवान बुद्ध करते थे। हिन्दुओं के लिए सिद्धपीठ काली का मंदिर है। कई सारे इंटरनेट पर जानकारियों का आकलन करने के पश्चात ही हमें इसका जवाब मिल सका परंतु फिर भी हम इसकी पुष्टि अपने तरफ से नहीं करते इसके लिए हमें खुद उनके धर्म और उनकी पूजा अर्चना के नियमों को काफी करीब से समझना होगा और उसके बाद ही किसी परिणाम पर पहुंचा जा सकता है।
बौद्ध धर्म का प्रचार – प्रसार कैसे किया था?
गौतम बुद्ध जी ने 80 साल की उम्र में अपने निर्वाण की घोषणा कर दी थी। गौतम बुद्ध के इस निर्णय के बाद जब गौतम बुद्ध ने समाधि ली तो उनके अनुयायियों ने बौद्ध धर्म का जमकर प्रचार – प्रसार किया। कई बड़े – बड़े राजा भी बुद्ध के अनुयायियों में शामिल हो गए थे। बुद्ध के उपदेशों को उनके अनुयायियों ने जनजन तक पहुँचाया। भारत – नेपाल के अलावा बौद्ध धर्म चीन – जापान – थाइलैंड – श्रीलंका – बर्मा – कोरिया – मंगोलिया आदिं देशों में फैला हुआ है। जहाँ आज भी वहां के लोग भगवान बुद्ध के द्वारा दिये गए उपदेशों का सही और अच्छे ढंग से पालन कर रहे हैं। भगवान बुद्ध के उपदेश बड़े ही सरल और आसान थे।
उनका कहना था कि समस्त संसार दुःखी है। इसका कारण ईच्छा या तृष्णा है। गौतम बुद्ध ने कहा है कि अपनी इच्छाओं का त्याग कर देने से मनुष्यों के समस्त दुःख दूर हो जाते है। आज भगवान गौतम बुद्ध की मृत्यु के 400 साल बाद भी सभी बौद्ध धर्म के लोग गौतम बुद्ध को अपने आराध्य भगवान बुद्ध के रूप में जानते है और पढ़ते है।
गौतम बुद्ध के संन्यास के बाद पत्नी और बेटे का क्या हुआ?
जब भगवान गौतम बुद्ध संन्यासी बन गए तो उनकी पत्नी ने भी वैराग्य लेने का फ़ैसला किया और आजीवन के लिए वस्त्राभूषण का त्याग कर दिया और हमेशा के लिए एक पिला वस्त्र धारण कर लिया। माँ के साथ ही उनके बेटे राहुल ने भी संन्यासी बनने का फ़ैसला किया और वो भी माता – पिता की राह पर चल पड़े। यशोधरा ने पहले तो हल्का भोजन लेना शुरू किया और बाद में दिन में केवल एक बार ही अन्न जल ग्रहण करने का फैसला ले लिया और त्याग और तपस्या को ही अपना जीवन बना लिया।
गौतम बुद्ध के बारे में रोचक तथ्य बातें
- आपको जानकार हैरानी होंगी कि मात्र 29 साल कि उम्र में गौतम बुद्ध ने अपने घर का त्याग कर दिया था और घर से दूर हो गए थे।
- गौतम बुद्ध के पिता शुद्धोधन शाक्य कुल के राजा थे।
- गौतम बुद्ध की माता मायादेवी की मृत्यु उनके जन्म के ठीक सातवे दिन ही होगी थी।
- गौतम बुद्ध का पालन – पोषण उनकी सोतैली माँ प्रजापति गोतमी ने किया था।
- बौद्ध धर्म की स्थापना स्वयं गौतम बुद्ध ने की थी।
FAQ
भगवान गौतम बुद्ध का जन्म कब हुआ था?
गौतम बुद्ध का जन्म लुम्बिनी वन में ईसा से 563 साल पहले हुआ था।
भगवान गौतम बुद्ध कि माता का क्या नाम था?
भगवान गौतम बुद्ध कि माता का नाम मायादेवी था।
कितने साल कि उम्र में गौतम बुद्ध ने घर छोड़ा था?
29 साल कि उम्र में गौतम बुद्ध ने घर छोड़ दिया था।
गौतम बुद्ध का पालन – पोषण किसने किया था?
गौतम बुद्ध का पालन – पोषण उनकी सोतैली माँ प्रजापति गोतमी ने किया था।
भगवान गौतम बुद्ध का विवाह कब और किस्से हुआ था?
भगवान गौतम बुद्ध की शादी मात्र 16 वर्ष की उम्र में राजकुमारी यशोधरा से हुआ था।
निष्कर्ष
हमने अपने आज के इस महत्वपूर्ण लेख में आप सभी लोगों को Gautam Budh के बारे में विस्तार पूर्वक से जानकारी प्रदान की हुई है और हमें उम्मीद है कि हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी आप लोगों के लिए काफी ज्यादा उपयोगी साबित हुई होगी और आपने गौतम बुद्ध के जीवन परिचय से कुछ ना कुछ जरूर अपने रियल लाइफ में सीख ली होगी।
अगर आप लोगों के मन में हमारे आज के इस महत्वपूर्ण लेख से संबंधित किसी भी प्रकार का सवाल या फिर कोई भी सुझाव है तो आप हमें कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं हम आपके द्वारा दिए गए प्रतिक्रिया का जवाब शीघ्र से शीघ्र देने का पूरा प्रयास करेंगे और हमारे इस महत्वपूर्ण लेख को शुरुआत से लेकर अंतिम तक पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आपका कीमती समय शुभ हो।